कालचक्र की गूंज
परिचय एवं संदर्भ
प्राचीन भारत के हृदय में, जहाँ गंगा की धारा कलकल करती बहती थी, एक युवा जिज्ञासु रहता था जिसका नाम 'विवेक' था। विवेक सदैव समय के रहस्य और जीवन के उतार-चढ़ाव को समझने के लिए उत्सुक रहता था। वह अक्सर गाँव के वटवृक्ष के नीचे बैठे वृद्ध गुरु 'ज्ञानंद' के पास जाता और अपने प्रश्नों की झड़ी लगा देता। "गुरुवर," एक शाम उसने पूछा, "यह जीवन चक्र इतना जटिल क्यों है? कभी सुख है, कभी दुःख; कभी उत्थान है, कभी पतन। क्या इसका कोई अंत नहीं?"
गुरु ज्ञानंद मुस्कुराए, उनकी आँखों में ब्रह्मांड की गहराई झलक रही थी। "वत्स विवेक," उन्होंने शांत स्वर में कहा, "तुम जिसे जटिलता समझते हो, वह वास्तव में प्रकृति का सहज प्रवाह है। समय एक चक्र है, कालचक्र। यह निरंतर घूमता रहता है, ऋतुओं की तरह परिवर्तन लाता हुआ। इसमें कुछ भी स्थायी नहीं है, न सुख, न दुःख।"
उन्होंने आगे समझाया, "इस चक्र में हमारी यात्रा हमारे कर्मों द्वारा निर्धारित होती है। जैसा हम बोते हैं, वैसा ही काटते हैं। गीता का एक शाश्वत सत्य हमें यही सिखाता है।" गुरु ने अपनी आँखें बंद कीं और एक क्षण के मौन के बाद, उन्होंने एक श्लोक का उच्चारण किया, जिसकी गूंज वातावरण में फैल गई:
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
"इसका अर्थ है," गुरु ने समझाया, "तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फलों में कभी नहीं। तुम न तो स्वयं को कर्मों के फलों का कारण समझो और न ही कर्म न करने में तुम्हारी आसक्ति हो।" विवेक ध्यान से सुन रहा था। 'केवल कर्म पर ध्यान, फल पर नहीं?' यह विचार उसके मन में गूंजने लगा। उसे लगा जैसे समय के रहस्य का एक पर्दा हटा हो।
यहाँ कर्म और समय के सिद्धांत पर एक प्रेरणादायक वीडियो दिखाया जा सकता है।
गुरु ने आगे कहा, "कालचक्र हमें अवसर देता है अपने कर्मों को सुधारने का, अपने कर्तव्यों का पालन करने का, और अंततः इस चक्र से मुक्त होने का मार्ग खोजने का। हर क्षण एक नई शुरुआत है, विवेक। अतीत की चिंता और भविष्य की व्यग्रता छोड़कर, वर्तमान क्षण में अपने धर्म का पालन करो। यही सच्ची स्वतंत्रता है।"
उस दिन विवेक ने सीखा कि जीवन की जटिलताएँ वास्तव में विकास के अवसर हैं। कालचक्र की गूंज भयभीत करने वाली नहीं, बल्कि प्रेरणादायक थी। यह हमें याद दिलाती है कि हम अपने भाग्य के निर्माता हैं, अपने कर्मों के माध्यम से। सही कर्म और अनासक्ति के साथ, हम शांति और संतोष पा सकते हैं, भले ही समय का पहिया घूमता रहे।
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