
कथा-परिचय एवं स्रोत संकेत
प्रस्तुत कथा, "अरण्यानी और कौशिक: वन और वेदना की प्रेम गाथा", ...
कथा का ताना-बाना एक युवा तपस्वी ...
संभावित स्रोत प्रेरणा (काल्पनिक संदर्भ):
- मूल भाव: ऋग्वेद, मंडल १०, सूक्त १४६ (अरण्यानी सूक्त)
- दार्शनिक पृष्ठभूमि: बृहदारण्यक उपनिषद् (आत्म-तत्व), छांदोग्य उपनिषद् (तत्त्वमसि)
- चरित्र-चित्रण: आरण्यक साहित्य में वर्णित तपस्वियों का जीवन एवं प्रकृति से उनका संबंध।
- काल्पनिक सर्ग/अध्याय: 'ज्ञान-वन पर्व', अध्याय ५-१० (यदि यह किसी महाकाव्य का हिस्सा होती)।
भाग 1: तपस्वी का आगमन
प्रारंभिक यात्रा
अतिप्राचीन काल की बात है, जब भारतवर्ष की भूमि वेदों की ऋचाओं से गुंजायमान थी ... (कौशिक) ... एकांत चिंतन से ही संभव है।

वन में आसन
उसने अपने गुरु से आशीर्वाद लिया और न्यूनतम आवश्यकताओं के साथ वन की ओर प्रस्थान किया। ... (अहं ब्रह्मास्मि) ... किन्तु भीतर कहीं एक अपूर्णता का बोध शेष था।
वन केवल शांत ही नहीं था, वह जीवन से स्पंदित था। ... (साक्षी भाव) ... जो किसी शास्त्र में वर्णित नहीं था।
विशेष प्रस्तुति: आंतरिक शांति की यात्रा
0 Comments